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भारतीय लोकतंत्र ही है तमाम समस्‍याअों की जड़!

santosh kumar
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देश की तमाम समस्याओं की जड़ भारतीय लोकतंत्र है। मैंने लोकतंत्र को दोष न देकर भारतीय लोकतंत्र पर दोषारोपण किया है। क्योंकि भारत में लोकतंत्र ही सत्ता तक पहुंचने का मार्ग है और भारतीय लोकतंत्र अभी इसके लिए परिपक्व नहीं है, जिसका लाभ आयोग्य और सत्ता के लालची जैसे लोग उठा रहे हैं। ऐसे लोगों को इस कदर सत्ता की भूख रहती है कि देश में किसी भी प्रकार की अराजकता को अंजाम देकर वोट बैंक सुरक्षित करते हैं। यहां तक कि भारत की विविधता का पूरा लाभ उठाते हैं और उनकी एकता में फूट भी डालने का काम करते हैं।


india



एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि कोई भी सरकारी या गैर सरकारी संस्था इस अराजकता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल पायी है। भारतीय लोकतंत्र तमाम राजनीतिक समस्याओं का कारण है। भारत की जो मूल समस्या है, वह इस व्यवस्था का शिकार बन चुकी है, जो अनिश्चित काल तक रहने वाली है।


इसी उदार राजनीतिक व्यवस्था का लाभ उठाकर शिक्षा का स्तर गिराया जा रहा है, ताकि लोगों की समझ न विकसित हो पाए। लोकतंत्र भारतीय राजनीति में इसलिए शामिल किया गया, ताकि समाज में समानता बनी रहे, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। भारतीय राजनीति में तमाम असमानताएं व्याप्त हैं। एक योग्य आम नागरिक की पहुंच से बाहर है राजनीति करना।


राजनीतिक दल यह साबित करने में लगे रहते हैं कि यह लोकतंत्र की जीत है, जबकि यह सब महज एक मिथ्या है और कुछ भी नहीं। मैं तो यहां तक कहूंगा कि अगर राजनीतिक दलों में सत्ता की भूख की वजह से आपसी मतभेद न होता, तो मतदान और मतगणना भी सुरक्षित नहीं होती। राजनीतिक दल राष्ट्र को कम महत्व देकर अपनी-अपनी विचारधारा को प्राथमिकता देते हैं।



समस्या और समाधान पर एक नजर



भारत देश के पास आज वह सब कुछ है, जिससे देश की तमाम समस्याओं का समाधान हो सके, लेकिन किसी एक समस्या का भी निदान पूर्णत: नहीं हो पाता है। गरीबी, अशिक्षा, बढ़ती जनसंख्या, स्वास्थ्‍य समस्‍या, सांप्रदायिकता, जातिवाद, वर्गवाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार आदि ये सब समस्याएं एक-दूसरे के पूरक हैं।


इन समस्याओं में से भारत और राज्य की सरकारें मात्र दो समस्या शिक्षा और गरीबी पर पूरी ईमानदारी, निष्ठा और बिना पक्षपात के तथा सत्ता के लालच को छोड़कर और राज्य के स्वार्थ को सर्वोपरि रखकर काम करें, तो इन सब समस्याओं से निजात पाया जा सकता है।


कुछ मूल समस्याएं जो सब नजरअंदाज करते हैं, आज विश्व के बेहद गरीबों में एक तिहाई गरीब भारत के हैं। पांच साल से कम उम्र में सबसे अधिक बच्चों की मृत्यु भारत में होती है। दुनिया में सबसे अधिक भूखे, दुनिया में सबसे अधिक अस्वस्थ लोग भारत में हैं। भारत की स्थिति आंतरिक्ष प्रोग्राम (isro) में छोड़कर सभी में दयनीय है।


आओ गरीबी को एक पहलू से समझने का प्रयास करते हैं


भारत एक कृषि प्रधान देश है। वर्तमान भारत की उत्पादन क्षमता काफी अच्छी है। देश के GDP में लगभग 15 प्रतिशत योगदान कृषि का है। साथ ही 50 प्रतिशत से भी अधिक लोगों की आय का स्रोत कृषि ही है, लेकिन किसान खेती-बाड़ी मजबूरी में करता है। किसान की हालात बद से बदतर होती जा रही है। वो कर्ज में डूबता जा रहा है। आत्महत्या कर रहा है। बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिलवा पाता है तथा हर संभव प्रयास करता है कि उसकी संतान कृषि न करे, चाहे कोई भी रोजगार कर ले।


भारतीय कृषक की इतनी बुरी दुर्दशा क्यों है। क्या भारत इस बीमारी से लड़ने में सक्षम नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि इसका प्रयास नहीं किया जा रहा, लेकिन जो प्रयास हो रहे हैं और जिस तरीके से हो रहे हैं, इससे समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता, यह तय है।



भारत के पास विषय विशेषज्ञ हैं और तकनीकी भी है, लेकिन सही रणनीति और क्रियान्वयन का अभाव है। कृषि संबंधी समस्या से निजात पाने के लिए कोई जरूरत नहीं समझी जा रही है, क्योंकि किसानों का गरीबी से बहुत नजदीकी संबंध है, जो देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। अगर लोगों की गरीबी जैसी समस्या का समाधान हो जाए, तो लोगों की जीविका सरल हो जाएगी। इससे देश के वर्तमान राजनीति के आधार में से एक बहुत महत्वपूर्ण पिलर टूट जाएगा। अब तक अधिक ध्यान जातिवाद और धर्म पर दिया जाता है, लेकिन वर्तमान में गरीबी सबसे अहम मुद्दा है।



गरीबी ही है, जो देश में तमाम अराजकताओं को जन्म देती है, जैसे चोरी, लूटपाट, सांप्रदायिकता, अशिक्षा, आंतरिक असुरक्षा आदि। शिक्षा का व्यावसायीकरण होने से गरीब अच्छी शिक्षा नहीं ले पाते, जिसकी वजह से वे रोजगार से वंचित रह जाते हैं और बेरोजगारी उनको नये तरीके से गरीब बना देती है। शिक्षा न पाने से वे जीवन के अन्य पहलुओं को समझने में सक्षम नहीं होते और फिर अराजकता को अंजाम देते हैं।



सरकार एक समय तक मुफ्त शिक्षा का इंतजाम भी करती है, लेकिन उसकी गुणवत्ता सवालों के घेरे में रहती है। सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण के लिए उठाया गया कोई भी कदम सही परिणाम तक नहीं पहुचता, जबकि इन सबके लिए भारत में एक जटिल सिस्टम का जाल है। शिक्षा में क्या कमी है इससे आप सब परिचित हैं। जो व्यवस्था चल रही है, यह सब तब तक नहीं सुधरेगी, जब तक आप जागरूक होकर पूरी जिम्मेदारी से अव्यस्था के खिलाफ सवाल नहीं खड़ा करेंगे। देश हमारा है, सर्वोच्च संविधान हमारा है, राजनीति हमारी है, फिर यह सब क्यों?

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